शस्य कार्यिकी के उद्देश्य | शस्य कार्यिकी का क्षेत्र

शस्य कार्यिकी के उद्देश्य (Aims of Crop Physiology)

 

शस्य कृषित कार्यिकी का अध्ययन करने का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि हम यह भली भाँति समझ सकें कि पौधे के जीवन काल में कौन-कौन सी जैविक क्रियाएँ पौधे में होती हैं? किस प्रकार से होती है? इनमें से प्रत्येक का पौधे के जीवन में क्या महत्त्व है? पौधे के अन्दर और बाहर के कौन-कौन से कारक इन क्रियाओं को प्रभावित करते हैं? प्रत्येक कारक का प्रत्येक क्रिया पर कितना प्रभाव होता है तथा प्रत्येक क्रिया का पौधे की वृद्धि और विकास पर कितना और किस प्रकार से प्रभाव होता है? पौधे बाह्य वायुमण्डल से क्या ग्रहण करते हैं? वे जो ग्रहण करते हैं किसलिये करते हैं? ग्रहण किये गये पदार्थों का क्या होता है? कुछ पौधे शरद और कुछ ग्रीष्म ऋतु में पुष्पन करते हैं क्यों? इन प्रश्नों के उत्तर जान लेने के बाद ही एक पादप कार्यिकीवेत्ता (Plant Physiologist) पौधों के विकास को नियन्त्रित करके उन्हें मनुष्यों के लिये अधिक आर्थिक महत्त्व के बना सकता है।

 

शस्य कार्यिकी का क्षेत्र (Scope of Crop Physiology)

 

मनुष्य जन्म से ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये पौधों पर आश्रित रहा है। पौधों से न केवल मनुष्यों तथा जानवरों के लिये भोजन ही प्राप्त होता है बल्कि उनके लिये कपड़ा, मकान, ईंधन, तेल, दवाएँ तथा जीवन के लिये अन्य सभी आवश्यक वस्तुयें प्राप्त होती हैं। यही कारण है कि प्राचीन काल से वैज्ञानिक तथा सामान्य मनुष्य पौधों के विषय में ज्ञान प्राप्त करने में संलग्न रहे हैं। आज जबकि अनेको समस्याएँ हमारी उन्नति में बाधक बनी हुई हैं जैसे अति तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या, खाद्य सामग्री की कमी, प्रदूषण, वातावरणीय गैसों का असन्तुलन, मनुष्य, जीव-जन्तुओं तथा पौधों के अनेकों रोग, किसी स्थान पर अनावृष्टि तथा किसी पर अतिवृष्टि आदि, वनस्पति कार्यिकी का महत्त्व तथा क्षेत्र और अधिक विस्तृत करते हैं। पादप कार्यिकी के ज्ञान के सही प्रयोग द्वारा ही हम इन समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। वास्तविकता तो यह है कि इन समस्याओं के समाधान के लिये की गयी खोजों के परिणाम स्वरूप पौधों की वृद्धि तथा विकास को इस सीमा तक नियन्त्रित कर लिया गया है कि उन्हें जब और जहाँ चाहें उगा सकते हैं। प्रत्येक मौसम में फल फूल उत्पन्न कर सकते हैं और बिना मृदा के भी उगा सकते हैं।

 

वनस्पति कार्यिकी का क्षेत्र न केवल पौधों की वृद्धि तथा विकास को इच्छानुसार नियन्त्रित करना ही है बल्कि तैयार बीजों, फलों, तथा सब्जियों आदि को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने में भी सहायक है। इन वस्तुओं को अधिक समय तक सुरक्षित रखने के लिये श्वसन दर को अति मन्द रखने की आवश्यकता होती है। पादप कार्यिकी से हमें पता चलता है कि निम्न तापमान पर श्वसन की दर बहुत ही कम होती है। अतः लम्बे समय तक कृषि फसलों के बीजों को सुरक्षित रखने के लिये उन्हें तापमान नियन्त्रित रेफ्रीजरेटरों में रखा जाता है तथा सब्जियों को शीतगृहों (cold storages) में रखते हैं। निम्न तापमान के अतिरिक्त बीजों में नमी की मात्रा को कम करके भी श्वसन दर को कम किया जाता है। बीजो में नमी की वह मात्रा जिस पर भण्डार गृहों में बीजों को लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जाता है, सुरक्षित भण्डार नमी मात्रा (safe storage moisture content) कहलाती है तथा यह विभिन्न फसलों के बीजों के लिये भिन्न होती है।

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